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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा ने हाल ही में अमेरिकी अधिकारियों के बीच कुछ नाराजगी पैदा की है। लेकिन इस कदम को एक रणनीतिक दृष्टिकोण से देखने पर, यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत ने अपने हितों की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण और दूरदर्शी निर्णय लिया है।

रूस-भारत संबंधों का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

भारत और रूस के बीच के संबंध ऐतिहासिक रूप से मजबूत रहे हैं। यह संबंध शीत युद्ध के समय से ही विकसित हुए हैं जब भारत और तत्कालीन सोवियत संघ के बीच मजबूत रणनीतिक साझेदारी थी। यह साझेदारी अब भी जारी है और दोनों देशों के बीच कई क्षेत्रों में घनिष्ठ सहयोग है, जिसमें रक्षा, ऊर्जा और विज्ञान और प्रौद्योगिकी शामिल हैं।

रणनीतिक स्वायत्तता की नीति

प्रधानमंत्री मोदी की रूस यात्रा भारत की रणनीतिक स्वायत्तता की नीति का एक स्पष्ट उदाहरण है। भारत ने हमेशा अपनी विदेश नीति में स्वतंत्रता को प्राथमिकता दी है और किसी भी एक ध्रुवीय शक्ति के साथ संपूर्णता में जुड़ने से बचा है। इस यात्रा ने भारत की इस नीति को और मजबूत किया है, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखता है।

रूस-चीन संबंधों पर नजर

रूस और चीन के बीच बढ़ते संबंधों के बीच, भारत ने रूस के साथ अपने संबंधों को मजबूत करके एक संतुलन बनाने का प्रयास किया है। भारत यह सुनिश्चित करना चाहता है कि रूस पूरी तरह से चीन के पाले में न जाए। यह एक महत्वपूर्ण रणनीतिक कदम है, विशेषकर तब जब भारत और चीन के बीच तनावपूर्ण संबंध हैं।

ऊर्जा सुरक्षा और रक्षा सहयोग

भारत रूस से प्रमुख ऊर्जा आयातक है और रूस भारत को सैन्य हार्डवेयर की आपूर्ति भी करता है। इस यात्रा के दौरान, दोनों देशों ने नागरिक परमाणु सहयोग को और गहरा करने का निर्णय लिया, जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, रक्षा क्षेत्र में सहयोग को और बढ़ाने के लिए भी कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए।

वैश्विक राजनीति में भारत की भूमिका

प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा वैश्विक राजनीति में भारत की बढ़ती भूमिका को भी दर्शाती है। भारत अब एक उभरती हुई महाशक्ति है और अपने आर्थिक और रणनीतिक हितों की सुरक्षा के लिए स्वतंत्र निर्णय लेने में सक्षम है। इस यात्रा ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि भारत किसी भी एक पक्ष की ओर झुकाव दिखाने के बजाय अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को प्राथमिकता देता है।

अमेरिका-भारत संबंध

हालांकि अमेरिकी अधिकारियों ने इस यात्रा पर नाराजगी व्यक्त की है, लेकिन भारत और अमेरिका के बीच संबंधों पर इसका दीर्घकालिक प्रभाव नहीं पड़ेगा। अमेरिका ने भी यह समझ लिया है कि भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखना चाहता है और दोनों देशों के बीच सहयोग जारी रहेगा।

अमेरिका और भारत ने प्रौद्योगिकी और रक्षा के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ाने के लिए कई महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं और यह यात्रा इन समझौतों को प्रभावित नहीं करेगी।

निष्कर्ष

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा एक रणनीतिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह यात्रा न केवल भारत की विदेश नीति की स्वतंत्रता को दर्शाती है, बल्कि वैश्विक राजनीति में भारत की बढ़ती भूमिका को भी प्रकट करती है। भारत ने अपने राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के लिए यह निर्णय लिया है और यह सुनिश्चित किया है कि रूस के साथ उसके संबंध मजबूत बने रहें।

इस यात्रा ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि भारत किसी भी एक ध्रुवीय शक्ति के साथ संपूर्णता में जुड़ने के बजाय अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को प्राथमिकता देता है। यह एक संतुलित और दूरदर्शी दृष्टिकोण है जो भारत के राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा करता है और वैश्विक राजनीति में उसकी भूमिका को और मजबूत करता है।

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